छत्तीसगढ

पद्मश्री डॉ. महादेव प्रसाद पाण्डेय और समाजसेवी नारायण प्रसाद अवस्थी की प्रतिमा का अनावरण करेंगे सीएम भूपेश बघेल

रायपुर ऑफिस डेस्क. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गुरुवार को शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय परिसर रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे. वे यहां पद्मश्री एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. महादेव प्रसाद पाण्डेय और समाजसेवी स्वर्गीय नारायण प्रसाद अवस्थी की प्रतिमा का अनावरण करेंगे.

निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 5 अक्टूबर को सुबह 11.50 बजे मुख्यमंत्री निवास से प्रस्थान कर पूर्वान्ह 12 बजे शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय परिसर पहुंचकर वहां आयोजित प्रतिमा अनावरण समारोह में शामिल होंगे.

कौन हैं पद्मश्री महादेव प्रसाद पाण्डेय ?

डॉक्टर महादेव प्रसाद पाण्येड का जन्म रायपुर के ब्राह्मणपारा रायपुर में 17 जनवरी 1929 को हुआ था. उनके पिता राष्ट्रीय विचारधारा के थे और नेताओं के भाषण सुनने उनकी सभाओं में जाते थे. बालक महादेव पर उनका प्रभाव पड़ा था.

वह भी उनके साथ जाते थे. 1939 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में भी वे अपने पिता के साथ गए थे. उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी भाग लिया था. भारत छोड़ो आंदोलन में 9 अगस्त 1942 को राष्ट्रीय विद्यालय से निकले विशाल जुलूस में गांधी चौक से राष्ट्रवादी नारे लगाते हुए वे भी शामिल हुए थे.

जुलूस का नेतृत्व कमल नारायण शर्मा, त्रेतानाथ तिवारी और हरिसिंह दरबार कर रहे थे. गांधी चौक में जुलूस, सभा के रूप में परिवर्तित हो गई थी. सभा की अध्यक्षता त्रेतानाथ तिवारी ने की. सभा में अनेक लोगों की गिरफ्तारियां हुई.

महादेव प्रसाद पाण्डेय भी गिरफ्तार हुए. उन्हें 6 महीने की सजा हुई. रायपुर जेल में वे सबसे छोटी उम्र के कैदी थे. बाद में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से आयुर्वेद की डिग्री प्राप्त की. उन्हें 2007 में शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री से विभूषित किया गया. 27 मार्च 2021 को उनका देहावसान हुआ.

समाजसेवी नारायण प्रसाद अवस्थी

नारायण प्रसाद अवस्थी का जन्म 31 मार्च 1889 को हुआ था. वे मालगुजार थे. सादगी से भरे नारायण प्रसाद अवस्थी ने अपनी मेहनत और कार्य से प्रसिद्धि प्राप्त की. वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रुचि रखते थ. उनकी खुद की एक भजन मंडली थी.

गरियाबंद, देवभोग, राजिम, फिंगेश्वर, रायपुर सहित 100 गांवों में वे भजन-कीर्तन करते थे. इसके साथ ही वे समाज सेवा के कार्य में हमेशा जुटे रहते थे. 12 मई 1959 को उनका देहावसान हो गया.

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