छत्तीसगढ

रिसर्च करने बस्तर के अबूझमाड़ पहुंची डाॅक्टरों की टीम, आदिवासियों की सेहत जांची, घोटुल प्रथा को भी करीब से जाना…..

रिसर्च करने बस्तर के अबूझमाड़ पहुंची डाॅक्टरों की टीम, आदिवासियों की सेहत जांची, घोटुल प्रथा को भी करीब से जाना

रायपुर : बस्तर का अबूझमाड़ देश का सबसे दुरूह और दुर्गम हिस्सा माना जाता है. अबूझ का अर्थ है जिसको जाना नहीं जा सकता और माड़ का अर्थ पहाड़ियां हैं.

यहां रहने वाले अबुझमाडिया जनजाति अपनी खास सांस्कृतिक पहचान के साथ जंगलों के बीच निवास करती है. इनकी सांस्कृतिक विरासत छत्तीसगढ़ की खास पहचान है. डॉ. सत्यजीत साहू की टीम ने बस्तर के अबुझमाड़ पहुंचकर देश के पहले अबुझमड़िया डाॅक्टर दोरपा से मुलाकात की. साथ ही लोगों के सेहत की जांच भी की.

आज जब पहली बार डॉ सत्यजीत साहू अबुझमाड़िया आदिवासी इलाके में आए तो उन्होंने देश के सबसे पहले अबुझमाड़िया डॉ दोरपा से पूछा, आपके लिए स्वर्ग क्या है?

डॉ. दोरपा ने कहा, दूर-दूर तक महुआ के पेड़ों का होना ही स्वर्ग है. इस धरती पर पेड़ों, जंगलों का होना ही स्वर्ग है. आदिवासियों का स्वर्ग-नर्क कहीं नहीं होता. वह यहीं होता है. ये अबुझमाड़ ही हमारा स्वर्ग है.

डॉ सत्यजीत साहू के साथ PURE प्रोग्रेसिव यूटिलाईजेशन ऑफ रिसर्च एंड ईकानामिक्स संस्था के रिसर्चर संतोष ठाकुर पहुंचे थे.

उन्होंने बताया कि मड़िया आदिवासियों के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और संस्कृति का आज के समय में नये तरीके से अध्ययन करना जरूरी है. डॉ. सत्यजीत साहू ने बताया, आदिवासियों के जंगल और सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखकर विकास करने की चुनौती के लिए नए ढंग से नए उपायों की खोज ही हमारे टीम का लक्ष्य है.

(DOST) डॉक्टर्स आन स्ट्रीट के स्टेट कोआर्डिनेटर सुनील शर्मा ने बताया कि प्रदेश के सभी विशेष संरक्षित जनजाति के हित लिए काम करने के उद्देश्य को लेकर टीम निकली है.

अबुझमाड़ के नारायणपुर जिले के ओरछा में पदस्थ देश के सबसे पहले मड़िया डॉ सुखराम दोरपा ने डॉ सत्यजीत की टीम का स्वागत किया. उन्होंने टीम के साथ जनजातियों के बीच अध्ययन को वर्तमान समय की जरूरत बताया.

रिसर्च की आवश्यकता पर दिया जोर

उन्होंने बताया, आदिवासियों की परंपराओं के अंदर उसका अंतर्निहित विज्ञान है, जिसको समझना जरूरी है. जिस तरीके की जीवन पद्धति ने हजारों वर्षों से उनको जीने में सहायता की है, उसके संरक्षण और संवर्धन के साथ वर्तमान के विकास का अनुकूलन करना आज के समय में मड़िया आदिवासियों के लिये बड़ा प्रश्न बना हुआ है.

डॉ. सत्यजीत और डॉ. दोरपा दोनों ने ही रिसर्च की आवश्यकता पर जोर देकर विज्ञान और परंपराओं के आधार पर नये निष्कर्षों पर पहुंचने की बात पर जोर दिया. टीम के सदस्यों में सिस्टर अनुपना ईक्का और सिस्टर भुमी ने आदिवासियों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया.

स्वास्थ्य केंद्र के उन्नयन में लगे हैं डा. दोरपा

डॉ. दोरपा के भाई के सुरेश दोरपा केमिस्ट्री में एमएससी हैं और ओरछा काॅलेज में पढ़ाते हैं. डॉ. दोरपा ओरछा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के उन्नयन में लगे हुए हैं. उन्होंने गायनिक वार्ड एनआईसीयू चिल्ड्रन वार्ड को बेहतर बनाया है और वे सर्जरी के लिए भी प्रयासरत हैं.

टीम ने नजदीक के गांव गुदाड़ी का दौरा किया और अबुझमाड़िया गांव को बेहद नजदीक से देखा. सुखमति उसेंडी, रिया बड्डे , सुकडु और कात्या ने गांव में परंपरागत घर, बकरी और सुअर पालन की बाड़ी, लकड़ी को बारिश से बचाने बनाए गए बाडें को दिखाया.

जानिए घोटुल की विशेषता

गांव में सबसे खुबसुरत जगह घोटुल थी. वहां गांव के युवा रात को नाच गाने और बच्चे खेलने और कहानी सुनने आते हैं. साथ ही घोटुल में ही गांव की समस्याओं के लिए बैठक होती है.

किसी के मरने की सुचना भी घोटुल के नगाड़े से ही होती है. गांव से बाहर आते समय अबुझमाड़ गांव का श्मशान दिखाई दिया, जहां मृतक को दाह संस्कार के साथ उसके उपयोग किए सामान को भी वहीं टांग देते हैं. समृद्ध परंपराओं का अबूझमाड़ विकसित दुनिया के लिए अबुझ है और यही विशेष संरक्षित जनजाति की विशेषता है.

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