छत्तीसगढ

महासमुन्द – प्री मैट्रिक बालक छात्रावास में घोर लापरवाही, भोजन बना रहे बच्चे बुरी तरह झुलसे……

महासमुन्द – प्री मैट्रिक बालक छात्रावास में घोर लापरवाही, भोजन बना रहे बच्चे बुरी तरह झुलसे

सम्यक नाहटा, महासमुन्द : महासमुन्द जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर पटेवा स्थित प्री मैट्रिक आदिवासी बालक छात्रावास में घोर लापरवाही बरतने का मामला सामने आया है।

मिडिल स्कूल में 6-7वीं कक्षा में अध्ययनरत बच्चों को जब छात्रावास में भोजन नहीं मिला तो वे अपने लिए स्वयं भोजन पका रहे थे। उबलता हुआ मांढ (पसिया) उनके जांघ में गिर जाने से एक छात्र बुरी तरह से झुलस गया है। लेकिन अभी तक बुरी तरह से झुलसे बच्चों का प्राथमिक उपचार भी अभी तक नहीं कराया जा सका है।

इस स्थिति में उनके परिजनों को सूचित किया गया है।अभी तक उनके परिजन भी नहीं पहुंचे हैं। ना ही अधीक्षक और न ही रसोईया। इससे तीनों बच्चे बहुत डरे-सहमे हुए हैं।

बच्चा दर्द से कराह रहा था। घटना की जानकारी मिलते ही यूथ कांग्रेस विधानसभा अध्यक्ष सौरभ लोधी बालक छात्रावास पहुंचे और बच्चों से उनका हालचाल जाना। अधीक्षक से संपर्क करने की कोशिश भी की गई। लेकिन उनका मोबाइल नंबर छात्रावास में नहीं था, इसलिए उनसे ग्रामीणों और बच्चों का संपर्क नहीं हो पाया।

इन छात्रों की व्यवस्था देखने न तो अधीक्षक छात्रावास में उपस्थित है। और न ही रसोइया या चौकीदार। जब मीडिया रिपोर्टर को इसकी जानकारी मिली तो मौके पर पहुंची ।

बच्चों ने मीडिया से सामने अपनी व्यथा सुनाई किया। यह समूचा मामला 28 मार्च की रात 7 बजे की है। घटना होने के बाद से होस्टल के जिम्मेदार कर्मचारी-अधिकारी कथित तौर पर छात्रावास छोड़कर नदारद हो गए हैं। बच्चे अपने पालकों को मोबाइल फोन से सूचित कर बुलाए हैं। परिजनों के कुहरी गांव से पहुंचने की प्रतीक्षा की जा रही है।

ग्रामीणों और छात्रावास के बच्चों से मिली जानकारी के अनुसार कल रात से छात्रावास अधीक्षक नहीं हैं और रसोईया नशे में सो रहा था। भूखे प्यासे छात्रावासी विद्यार्थी खुद खाना बना रहे थे। इसी दरम्यान उनके ऊपर उबलता हुआ मांढ (पसिया) गिर गया। इससे एक छात्र बुरी तरह से झुलस गया है।

बताया गया है कि छात्रावास में 8 बालक हैं। उनमें से अभी केवल तीन खैरवार जनजाति के बच्चे ही छात्रावास में उपस्थित थे। छात्रावास के नजदीक में संजय पाटकर का घर है। वहां जाकर पीड़ित बच्चों ने व्यथा बताई। संजय ने मौके पर जाकर देखा तो वहां न तो अधीक्षक था और ना ही रसोईया सिर्फ तीन बच्चे थे।

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