छत्तीसगढ

एक बार फिर दलपत सागर को बचाने तालाब में उतरे नगरवासी….सफ्ताह के दो दिन शनिवार रविवार करेंगें दलपत सागर की सफाई…तालाब की लाइटें कैमरे बंद- कचरा डाल रहें लोग कोई निगरानी नही..

एक बार फिर दलपत सागर को बचाने तालाब में उतरे नगरवासी….सफ्ताह के दो दिन शनिवार रविवार करेंगें दलपत सागर की सफाई…तालाब की लाइटें कैमरे बंद- कचरा डाल रहें लोग कोई निगरानी नही..

जगदलपुर : बस्तर मुख्यालय के लोगों ने छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े तालाब की सफाई करने के लिए एक बार फिर अभियान छेड़ रखा है।यह तालाब सालों से उपेक्षित में पड़ी थी

5 नवंबर 2019 से 26 जनवरी 2020 तक 90 दिन दलपत सागर बचाओ अभियान के सदस्यों ने नगरवासियों के सहयोग से बड़ा आन्दोलन छेड़ा गया था तब प्रशासन जागा और तलाब का सौंदर्यीकरण किया गया परन्तु पुनः तालाब गन्दा होने लगा है ।जिसे देख दलपत सागर बचाओ अभियान के सदस्य विचलित हो गये

और बैठक कर पुनः सफाई अभियान प्रारंभ करने का निर्णय लिया है।अभियान के सदस्यों ने सफ्ताह के दो दिन शनिवार और रविवार को दलपत में श्रमदान करने का निर्णय लिया है।

इसी के तहत शनिवार को अभियान के सदस्य सुबह 7 बजे इकट्टा हुये.पहले तो सदस्यों ने दलपत सागर में बने गार्डन की सफाई की फिर तालाब के नीचे उतरे और जलकुम्भी तथा घास आदि को बाहर निकाला।तालाब में बड़ी संख्या में लोगों के द्वारा फेंकें गये शराब की बोतलें,झिल्ली पन्नी,दवाई की शीशियाँ प्लास्टी बोतलें बाहर निकाली गई।

अभी भी बड़ी संख्या में जल को दूषित करने वाली सामग्री लोग तलाब में फेंक रहें है।उचित रखरखाव और नगर निगम जगदलपुर द्वारा सफाई की सही क्रियान्वयन नहीं होने के कारण तालाब एक बार फिर से विलुप्त होने की कगार पर आने गया है।शहर के लोगों ने इस तालाब को वापस मूल स्वरूप में लाने के लिए एक वृहद अभियान की थी

जो फलीभूत होती नजर नही आ रही है।यही वजह है की एक बार फिर अभियान की शुरुवात शनिवार से प्रारम्भ की गई है । सुबह 7 बजे से 9 बजे तक नगरवासी तालाब में फैली गंदगी और जलकुम्भियों को बाहर निकालने में जुट गयें।एकजुटता का ही नतीजा है कि पहले दिन बड़ी तादाद में कचरा खरपतवार तालाब से बाहर निकाला गया.

ऐसे शुरू हुआ था अभियान

बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए शुरू हुई मुहिम ने बस्तर मुख्यालय जगदलपुर में स्थित दलपत सागर बचाने के आन्दोलन को जन्म दिया।

अभियान से जुड़े सदस्यों और नगरवासियों ने छतीसगढ़ के सबसे बड़े तालाब को सरंक्षित करने के बेड़ा उठाया है।इंद्रावती नदी के सूख जाने से बस्तर के लोगों ने शासन के प्रति काफी आक्रोश थे. 14 दिन तक पदयात्रा कर इंद्रावती बचाने के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ा था।वर्षा ऋतु में अभियान के सदस्यों द्वारा 5 हजार पौधे रोपण करने के बाद छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े तालाब की दुर्दशा को देखते हुए

एक नये अभियान की शुरुआत की थी।5 नवंबर से शुरू हुए इस अभियान में लगातार लोग जुड़ते जा रहे हैं।प्रतिदिन उत्साह के साथ लोगों का जमावड़ा दलपत सागर में देखने को मिल रहा था।दलपत सागर के इतिहास पर एक नजर दौड़ाई जाए, तो सन 1772 में राजा दलपत देव ने इस तालाब को शहर के वाटर लेवल तथा निस्तारी के लिए बनाया था।

समय के साथ साथ यह तालाब उपेक्षित होने लगा।सौंदर्यीकरण के पूर्व इस विशाल तालाब की स्थिति बद से बदतर हो चुकी थी।हालांकि पूर्व की सरकार में इस तालाब को बचाने का प्रयास किया गया।लेकिन, इच्छाशक्ति की कमी के आगे इस विशाल तालाब की कुछ नहीं चली।आज पुनः परिस्तिथियां पहले की तरह हो चुकी हैं.

दलपत सागर का इतिहास

लगभग 400 साल पहले बस्तर रियासत के महाराजा दलपतदेव ने इस तलाब का निर्माण सिंचाई और निस्तारी के लिये किया था. ग्राम मधोता से 1772 में राजधानी जगदलपुर शहर में शिफ्ट किया गया था।उसी दौरान राजा ने इस विशाल तालाब का निर्माण करवाया।आगे जाकर यह तालाब दलपत सागर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

यह तालाब प्रदेश में यह सबसे बड़े तालाबों में गिना जाता है. बताया जाता है कि रियासतकालीन दौर में 50 से अधिक तालाब जल संग्रहण के लिये बनाये गये. उस दौर में जल संचय के लिये बेहतर कार्य किये जाते थे. परंतु वक्त के साथ साथ तालाबों की स्थिति दयनीय होती चली गई और आज यह स्थिति है कि आधे से ज्यादा तालाब और कुंए विलुप्त हो चुके हैं।उनमें कब्जा कर क्रंकीट का जंगल बना दिया गया है. अब कुछ ऐसे तलाब ही बचे हैं,

जो बस्तर की धरोहर हैं।उन्ही में से एक बड़े तलाब को संरक्षित करने का जिम्मा उठाया है दलपत सागर बचाओ जनजगरण अभियान के सदस्यों ने।अभियान से जुड़े सदस्यों की मानें तो, तालाब को पूरी तरह साफ करने का काम आसान नही है, जब तक शासन प्रशासन का सहयोग प्राप्त ना हो. मगर अभियान के माध्यम से साफ सफाई लगातार करने से कम से कम तलाब के किनारे फेंके गये कचरों को तो बाहर निकाला ही जा सकता है और शासन का ध्यान इस और आकर्षित किया जा सके.

मूल समस्या पर ध्यान नही- अभियानी

अभियान प्रमुख अनिल लुंकड ने कहा की 3 वर्ष पहले दलपत सागर बचाओ अभियान के सदस्यों ने सफाई का बीड़ा उठाया था उसके बाद निगम प्रशासन जागा और सौंदर्यीकरण हुआ।लेकिन दलपत का सिर्फ सौंदर्यीकरण हुआ है वह उपरी तौर पर वास्तव में आज भी खतरे में है।

मूल समस्या का समाधान आज तक नही हो पाया।इसीलिए अभियान के सदस्यों ने पुनः सफाई का जिम्मा उठाया है।जहाँ जहाँ बिड हार्वेस्टिंग मशीन नही जा सकती वहा वहा अभियान के सदस्य सफाई करेंगें।अभियान के सदस्य विधुशेखर झा ने कहा की शहर हमारा है,जगदलपुर हमारा है दलपत हमारा है इसका ध्यान भी हमे रखना होगा।

दलपत सागर में जलकुम्भी की समस्या विकराल है।इसे खत्म करने हेतु सतत निगरानी की आवश्यकता है.जल कुम्भियों और फेंकें जा रहे कचरों की वजह से तालाब का जल क्षेत्र घट रहा है।इस ओर ध्यान देना अतिआवश्यक है।अभियान से जुड़े सदस्य श्रीनिवास रथ ने कहा की दलपत सागर की मूल समस्या यथावत है

 

जिस रफ्तार से जल कुम्भियों को निकाला जा रहा है उससे दुगने रफ्तार से कचरा आ रहा है.निगम को चाहिए की किसी एक्सपर्ट की मदद ले और इसके निदान का हल ढूंढे।उन्होंने यह भी कहा की दलपत सागर में लाइटें गायब है कैमरे गायब है इस ओर भी निगम ध्यान दें। दलपत सागर में श्रमदान करने वालों में अनिल लुंकड,टी.के शर्मा दिनेश सराफ,विधु शेखर झा,कलविन्दर सिंह राजू,अनिल अग्रवाल,शिवरतन खत्री,धर्मेन्द्र महापात्र,रोशन झा,रतन व्यास,श्रीनिवास रथ,गीतेश सिंगाड़े,कोटेश्वर नायडू,स्वाति पाठक,अंकिता व अन्य सदस्य शामिल थे.

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