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यह सरकारी कार्यक्रम नहीं, सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन पर राष्ट्रपति के भी खिलाफ हो गए थे पंडित नेहरू…

22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से होने जा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर का उद्घाटन करेंगे। वहीं कांग्रेस इस कार्यक्रम को लेकर हमलावर है और पार्टी के बड़े नेताओं ने समारोह का आमंत्रण भी ठुकरा दिया है।

वहीं केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से ही हिंदू मान्यताओं के खिलाफ रही और पंडित नेहरू भी सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में नहीं गए थे।

सोमनाथ मंदिर की गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में होती है और यह कई बार आक्रांताओं के आक्रमण का शिकार हो चुका है।

लेकिन 1951 में जब इसके पुनरुद्धार के बाद उद्घाटन किया गया तो आखिर पंडित नेहरू कार्यक्रम में क्यों नहीं गए? आइए जानते हैं।

बेहद प्राचीन है मंदिर
सोमनाथ मंदिर बेहद  प्राचीन और ऐतिहासिक है। इसका उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि 649 ईसा पूर्व से ही इसके बारे में पता चलता है।

यह मंदिर इतना समृद्ध हुआ करता था कि इसपर आक्रांताओं की बुरी नजर पड़ गई। बताया जाता है कि लुटेरे महमूद गजनवी के हमले से पहले यहां अकूत संपत्ति थी।

इस मंदिर में सैकड़ों नर्तकियां और संगीतकार हुआ करते थे। 1024 ईसवी में महमूद गजनवी ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया। हजारों लोग मारे गए और मंदिर को तोड़कर खजाना लूट लिया गया। 

मंदिर बार-बार टूटा और बार-बार बना। आखिरी बार औरंगजेब ने 1706 में इसे तोड़वाया और इसके बाद लगभग ढाई सौ साल तक इसका पुनर्निर्माण नहीं हो सका।

मौजूदा मंदिर का पुनर्निर्माण 1951 में हुआ था। हालांकि इसे पूरा होने में 44 साल का वक्त लग गया। केएम मुंश ने अपनी किताब ‘सोमनाथ द श्राइन इटरनल’ में लिखा था कि सरकार प्राचीन मंदिरों की रक्षा करने में असमर्थ थी।

वहीं 1947 में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण का ऐलान किया था।

महात्मा गांधी भी इस बात पर सहमत थे लेकिन उनका कहना था कि इसका खर्च सरकार को नहीं बल्कि जनता को वहन करना चाहिए। इसके बाद एक ट्रस्ट बना दिया गया। मुंशी इसके अध्यक्ष थे। 

पत्र में पंडित नेहरू ने क्या लिखा
1950 में सरदार पटेल का निधन हो गया। इसके बाद जब मंदिर के उद्घाटन का समय आया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने का था कि यह सरकारी कार्यक्रम नहीं है और भारत सरकार का इससे कोई संबंध नहीं है। इतिहासकार रोमिला थापर ने अपनी किताब ‘सोमनाथ दी मेनी वॉइसेज ऑफ हिस्ट्री’ में लिखा कि पंडित नेहरू ने कहा था कि मंदिर का पुनर्निर्माण सरकार नहीं करवा रही है।

वह इसे सरकारी रंग नहीं देना चाहते ते। 2मई को पंडित नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को एक प त्र लिखा औऱ कहा, यह सरकारी कार्य नहीं है।

हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो कि देश के धर्मनिरपेक्ष होने रास्ते में आड़े आए। यह हमारे संविधान का आधार है इसलिए सरकारों को ऐसी चीजों से जुड़ने से बचना चाहिए जो हमारे देश के धर्मनिरपेक्षध चरित्र पर असर डालती हों। 

क्या था राष्ट्रपति का स्टैंड
तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ज्योतिर्लिंग मंदिर के उद्घाटन में  पहुंचे थे। हालांकि पंडित नेहरू इस बात का समर्थन नहीं करते थे।

उन्होंने राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा था औऱ कहा था, मंदिर के शानदार उद्घाटन से खुद को जोड़ने का विचार मुझे पसंद नहीं है। ऐसे अहम समारोह में भाग लेने के कई अर्थ हैं। ऐसे में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करना संविधान के मूल तत्व के खिलाफ है। 

पंडित नेहरू के पत्र के बावजूद राष्ट्रपति कार्यक्रम में शामिल हुए। उनका कहना था कि मंदिर सबी जातियों और समुदायों की पूर्ण स्वतंत्रताका प्रतीक है।

इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण पूरा होने में 44 साल का वक्त लगा। 1995 में तत्कालीनी राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने सोमनाथ पहुंचकर इसे समर्पित किया। बता दें कि इस वक्त सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष पीएम मोदी हैं।

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