ढाले जाएंगे मां दंतेश्वरी के चांदी के सिक्के,10 ग्राम वजनी सिक्कों में ढालने की तैयारी
भक्तों ने मंदिर में चढ़ाए 36 किलो चांदी
दंतेवाड़ा। बस्तर की आराध्य देवी मांई दंतेश्वरी का खुद का चांदी का सिक्का जल्द ही श्रद्धालुओं को मिल सकेगा। श्रद्धालुओं के चढ़ाए हुए 36 किलो चांदी से 10 ग्राम के सिक्के बनाए जाएंगे, जिसके एक तरफ मां दंतेश्वरी, तो दूसरी तरफ मंदिर का चित्र अंकित किया जाएगा।
मंदिर के खजाने में अब तक 36 किलोग्राम चांदी जमा है, जिसे रखने के लिए जगह की कमी पड़ने लगी है।
यही वजह है कि टेंपल कमेटी दान में मिली इस चांदी का इस्तेमाल सिक्के की ढलाई में करवाना चाहती है, ताकि श्रद्धालुओं द्वारा खरीदे जाने से जमा हुई राशि को कमेटी के बैंक खाते में रख सकें।
टेंपल कमेटी के पदेन सचिव व एसडीएम जयंत नाहटा ने बताया कि प्रायोगिक तौर पर शुरुआत में 10 किलो चांदी से 10-10 ग्राम के ये सिक्के बनाए जाएंगे। इन सिक्कों को आम श्रद्धालु एक निश्चित मूल्य पर खरीद पाएंगे। इससे वे स्मृति चिह्न या यादगार प्रतीक के तौर पर अपने साथ संजोकर रख सकेंगे।
दान में मिली चांदी का होगा इस्तेमाल मां दंतेश्वरी मंदिर की दानपेटियां वर्ष में निश्चित अंतराल पर खोली जाती हैं, जिनमें भक्तों द्वारा अर्पित नगदी के अलावा सोने-चांदी के जेवरात भी चढ़ावे में आते हैं। ज्यादातर श्रद्धालु दानपेटी के बाहर रजिस्टर में दर्ज करवाकर मंदिर को जेवरात के रूप में अपना चढ़ावा समर्पित कर जाते हैं। नकदी को गिनती के बाद टेंपल कमेटी के बैंक खाते में जमा करवा दिया जाता है और सोने-चांदी के आभूषण सरकारी खजाने में जमा करा दिए जाते हैं।
सती का दांत गिरने से मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ की उत्पत्ति
दंतेवाड़ा स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। प्रचलित दंतकथा के अनुसार पत्नी सती का मृत देह लेकर फिर रहे भगवान शंकर का मोह भंग करने विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से सती के देह के कई टुकड़े कर दिए। जिन-जिन जगहों पर देह के टुकड़े गिरे, उन जगहों को शक्तिपीठ की मान्यता मिली। दंतेवाड़ा में सती के दांत गिरे, जिसकी वजह से इस क्षेत्र का नाम दंतेवाड़ा और यहां विराजित देवी का नाम दंतेश्वरी प्रचलित हुआ। इस प्राचीन मंदिर का संरक्षण कर रहे केंद्रीय पुरातत्व विभाग के दस्तावेजों के अनुसार मंदिर की स्थापना काल 11वीं-12वीं शताब्दी का होना अनुमानित है।