छत्तीसगढ

CG में समस्या ने सिखाया समाधान : पानी के अभाव में गांव छोड़ने लगे लोग, इस गांव से बन चुके हैं दो विधायक, जानिए फिर कैसी तरकीब आई काम…

CG में समस्या ने सिखाया समाधान : पानी के अभाव में गांव छोड़ने लगे लोग, इस गांव से बन चुके हैं दो विधायक, जानिए फिर कैसी तरकीब आई काम…

गरियाबंद : 80 के दशक तक गिरशूल राजनीति व व्यापार का धुरी कहलाता था, पर अब तस्वीर बदल गई है, क्योंकि 35 साल में 40 से ज्यादा बोर खोदे और सभी फेल हुए.

भौगोलिक परिस्थिति के कारण 2 विधायक देने वाले इस गांव के लोगों को पानी के लिए जूझना पड़ता है. बस्ती से बाहर दो मात्र बोर हैं, इसी बोर के सहारे ग्रामीण जल प्रबंधन करना सीख गए.

देवभोग मुख्यालय से महज 5 किमी दूरी पर बसा गांव गिरशूल में 2700 की आबादी है, जिनकी निस्तारी गांव से 2 किमी दूर बहने वाले बेलाट नाला के भरोसे है.

इसी नाले के पानी में जल ठहराव पर ही गांव के बाहर मौजूद दो बोर व हैंडपंप भी निर्भर है. जनवरी में अगर नाला में पानी सूखा तो मार्च से पहले इस गांव में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है. 10 साल पहले यह बात जब समझ में आई तो नाला भराव की तैयारी पंचायत व ग्रामीण मिलकर जनवरी माह से करते हैं.

सरपंच मैना बाई ने बताया कि ढोररा जलाशय से बेलाट नाले पर पानी आता है इसलिए यहां चेक डेम का निर्माण किया गया है. पानी का ठहराव बना रहे इसलिए मिट्टी की बोरियों से नाला बंधान होता है.

पंचायत मद से यह काम हम जनवरी माह में कर लेते हैं. बेलाट के अलावा फफसा व बागगोडा नाला भी है. ये तीनों नाला गांव के बाहरी 2 किमी की परिधि में अलग अलग दिशा में है. इन्ही नाला के भरोसे निस्तारी चलता है.

ग्रामीणों के सहयोग से बांधा गया नाला

गांव में नल जल योजना के तहत दो टैंक भी बने है, 400 से ज्यादा कनेक्शन है. जलजीवन मिशन के तहत भी कनेक्शन बिछाए गए हैं. पेयजल का सारा सिस्टम गांव के बाहर मौजूद दो बोर के सहारे है.

उपसरपंच तोषन यादव ने बताया कि इस साल से पहले तक लो वोल्टेज की समस्या थी, बोर नहीं चल पाता था. फरवरी के बाद से मई माह तक पानी के लिए सुबह 3 बजे से उठकर गांव की महिलाओं को सँघर्ष करना पड़ता था.

4 दिन पहले भी दो दिनों के लिए बोर नहीं चला. नाला में पानी भरा रहे इसलिए ग्रामीणों के सहयोग से नाला बांध दिया जाता है. इससे वाटर लेबल बढ़ा रहता है और पेयजल निर्भर वाले दो बोर में भी पानी पर्याप्त आता है.

40 से ज्यादा बोर हो गए फेल

1952 में जब पहली बार विधानसभा का गठन हुआ तो बिन्द्रानवागढ़ युग्म विधानसभा के लिए जिस ठाकुर गोकरण सिंह को मनोनीत किया गया वे इसी गिरशूल के थे.

पंडित रविशंकर के करीबी होने के कारण केंद्रिय मंत्री रहते हुए विद्याचरण शुक्ल व श्यामा चरण कईयों बार इस गांव में आते थे. गरियाबंद जनपद के पहले काउंसलर होने का तमगा भी ठाकुर गौकर्ण सिंह को हासिल था. 1993 में इसी गांव के रहने वाले चरणसिंह मांझी को भाजपा ने टिकट दिया.

1998 में दोबारा मांझी पर भरोसा जताया तो वे विधायक चुने गए थे. 4 दशकों तक गिरशूल बिन्द्रानवागढ़ का राजनीति धुरी बना था. 1980 के बाद जल संकट गहराने लगा. सम्पन्न लोग गांव छोड़ते गए,

हालांकि सभी प्रभावशील लोगों ने अपने-अपने प्रयास से विगत 35 वर्षों में 40 से ज्यादा बोर खनन कराया पर उनमें से एक भी सफल नहीं हुए. 600 से 700 फिट भी गहरे किये गए पर सफलता नहीं मिली. गांव के बाहर खोदे गए 2 बोर व एक हैंडपंप ही सफल है.

व्यापारियों ने भी छोड़ा गांव

राजनीतिक धुरी के अलावा यह गांव 60 के दशक का इलाके का बड़ा व्यापारिक केंद्र माना जाता था. 70 वर्षीय कारोबारी बसंत अग्रवाल ने बताया कि वे जब 6 साल के थे तब अपने पिता के साथ गिरशूल आये.

उनसे पहले कई व्यापारी जो उनके रिश्तेदारी में आते थे, आ चुके थे. गल्ला, ज्वेलरी, कपड़ा से लेकर सभी किस्म का कारोबार गिरशूल से सन्चालित हो रहा था.

गिरशूल पैसों वालों का गांव कहा जाने लगा. जरुरतमंदों को साहूकारी प्रथा के तहत पैसे भी दिया जाता था. अविभाजित एमपी, ओड़िसा, गुजरात व बंगला तक गिरशूल के कारोबार फैले थे. 90 के दशक तक जल संकट गहराया तो सभी देवभोग व रायपुर का रुख कर लिए. आज गिनती के ही व्यापारी वहां रहते हैं.

गांव से निकल गए कई जरूरी सुविधाएं

गांव के बुजुर्ग गगन यादव ने बताया कि ठाकुरों के जमाने में उन्होंने गांव के लिए दो कुंआ खुदवाया था. नाला में भी पर्याप्त पानी होते थे. गांव चट्टानों पर बसा होने के कारण बस्ती के भीतर पानी का कोई दूसरा विकल्प नहीं था.

1980 में जल संकट गहराने लगा. गांव का राजनीतिक, व्यापारिक प्रभाव विलुप्त होते गया. गांव में स्थापित ग्रामीण बैंक देवभोग चल दिया. यहां का सहकारी समिति लाटापारा से संचालित होने लगा.

पत्ता गोदाम मुड़ागांव चल दिया. अस्पताल, हाईस्कूल के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. आज स्थिति ऐसी है कि तमाम योजनाओं के बावजूद हमे अपने स्तर पर जल प्रबन्ध किये बगैर इसकी सुविधा नहीं मिलती. आने वाला पीढ़ी भी अब जल संघर्ष के लिए तैयार हो रहा है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button