छत्तीसगढ

बस्तर दशहरे में सौतेला रवैया : हर साल प्रशासन करता है लाखों खर्च, पर देवी की भूमिका निभाने वाली बच्ची और पुजारियों को नहीं मिलती आर्थिक सहायता…

जगदलपुर ऑफिस डेस्क. बस्तर दशहरे में जहां हर साल प्रशासन लाखों रुपए खर्च करता है. वहीं दशहरे की सबसे महत्वपूर्ण रस्म काछन गादी में देवी की भूमिका निभाने वाली, 9 दिनों तक उपवास रखने वाली पीहू श्रीवास्तव 7 साल की बच्ची और इस रस्म से जुड़े सभी पुजारियों को प्रशासन के सौतेले रवैये के चलते असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है. दशहरा समिति न ही तो इनकी कोई आर्थिक सहायता करती है और ना ही किसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराती है. 

दशहरा पर्व की शुरुआत ही काछन गादी रस्म में पीहू नामक 7 साल की बच्ची को कांटों के झूले पर बैठकर आदेश लेने से होती है. सदियों से चल रही इस परम्परा में देवी के रूप में कांटों के झूलों पर बैठाए जाने वाली बालिका पिछले साल से देवी के रूप में काछन गादी की इस रस्म में कांटों के झूलों पर बैठ रही है. इस रस्म में एक विशेष परिवार के अविवाहित युवतियों को ही कांटों के झूलों में बैठाया जाता है. इस रस्म से पूर्व युवती को 9 दिनों का उपवास रखना पड़ता है. इस परम्परा के अनुसार अविवाहित युवती को कुरंदी के जंगलों से लाये विशेष बेल के कांटों के झूलों में लिटाकर झुलाया जाता है. इसके बाद पर्व के मुखिया की ओर से दशहरा की शुरुआत करने की आज्ञा मांगी जाती है. इस दौरान माना जाता है कि युवती में साक्षात देवी समाकर उसके जरिए पर्व की शुरुआत करने का आदेश देती है.

जहां यह बच्ची इस रस्म की अदायगी के लिए 9 दिनों तक उपवास रखती है, लेकिन प्रशासन की ओर से पीहू को किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलती. यहां तक की उपवास के दौरान उसे खाने को फल तक मुहैया नहीं कराया जाता है. पीहू के परिजनों ने बताया कि, अधिकारियों से मांग करने के बावजूद उन्हें किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलती. लिहाजा उन्हें अपने पैसों से काछन गादी की सारी रस्म अदायगी करनी पड़ती है.

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