बहुत तुर्रम खां बनते हो…अंग्रेजों का जीना हराम करने वाले वीर के नाम पर बना जुमला; पर संसद में कर दिया बैन…
बहुत तुर्रम खां बनते हो। यह कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी।
कहावत सुनकर यही लगता है कि तुर्रम खां नाम को कोई शासक रहा होगा जो अपने आगे किसी की एक ना सुनता रहा होगा।
हालांकि यह सच नहीं है। तुर्रम खां का असली नाम तुर्रेबाज खां था जो कि अपनी वीरता और अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ने के लिए जाने जाते हैं।
अपनी संगठन शक्ति और वीरता की वजह से उन्होंने अंग्रेजों को भी नाकों चने चबवा दिए और काला पानी जैसी जेल से भी भाग निकले।
इसलिए अगर आप किसी को तुर्रम खां बोलते हैं तो यह उसका अपमान नहीं बल्कि एक तरह से वीरता की उपाधि से नवाजना हुआ।
हालांकि संसद में लोकसभा सचिवालय ने इस शब्द को उस लिस्ट में शामिल किया था जिनका इस्तेमाल कार्यवाही के दौरान नहीं किया जा सकता है। इसमें तुर्रम खां, शकुनि और दलाल जैसे शब्द भी शामिल थे।
कौन थे तुर्रम खां
तुर्रम खां हैदराबाद के एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो कि 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। वह अंग्रेजों और हैदराबाद के निजाम के खिलाफ थे।
उस समय हैदराबाद के निजाम अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। जिन सैनिकों ने निजाम का विरोध किया उन्हें कैद करवा लिया गया था।
इसके बाद तुर्रम खां ने रातों रात अंग्रेजों पर हमला कर दिया। हालांकि अंग्रेजों की इसकी भनक पहले ही लग गई थी। भीषण युद्ध हुआ लेकिन अंग्रेज तुर्रम खां को पकड़ा ना सके।
तुर्रम खां ने क्रांतिकारी चीदा खान को अंग्रेजों से छुड़वाने के लिए सेना तैयार कर दी। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों को परेशान कर रख दिया।
अंग्रेजों ने उनपर इनाम रख दिया। जब वह पकड़ में आए तो अंग्रेजों ने उन्हें काला पानी की सजा दे दी। कालापानी की गिनती ऐसी जेलों में होती थी जहां से भागना नामुमकिन था।
लेकिन तुर्रम खां ने अंग्रेजों की आंख में धूल झोंक दी और वहां से भी भाग निकले। तुर्रम खां को लेकर अंग्रेज काफी परेशान थे। वे किसी भी तरह से उनकी हत्या करवा देने पर उतारू थे।
मिर्जा कुर्बान अली बेग नाम के शख्स ने उन्हें धोखे से एक जंगल में पकड़ लिया और गोली मार दी। इसके बाद उनके शव को शहर में टंगवा दिया गया जिससे अंग्रेजी सरकार के लिए लोगों के मन में खौफ बैठ जाए।
लेकिन कौन जानता था कि वह अपना नाम कहावत में भी अमर कर जाएंगे।
आज अगर किसी के अड़ियाल रवैये की बात करनी होती है तो तुर्रम खां का नाम लिया जाता है। दरअसल वह इसलिए क्योंकि उनकी छोटी सी सेना के आगे भी अंग्रेज परेशान हो गए और उन्होंने जीवन भर झुकना गवारा नहीं किया।