चातुर्मास अवधि से लेकर दशावतार तक, जानें भगवान विष्णु से जुड़े इन स्वरूपों को, सभी प्रतिमाएं हैं मौजूद
भोपाल. देवशयनी एकादशी के साथ ही सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाएंगे व भगवान भोलेनाथ सृष्टि का संचालन कर रहे हैं. ऐसे में हम आज जानेंगे चातुर्मास की अवधि में भगवान विष्णु से जुड़े कुछ ऐसे स्वरूपों के बारे में जिनकी प्रतिमाएं भोपाल के अलग-अलग जगहों से मिली थी. जे पी बिड़ला संग्रहालय में भगवान विष्णु के क्षीर सागर में विश्राम की लीला को प्रदर्शित करने वाली 12वीं से 13वीं शताब्दी की प्रतिमा विद्यमान है. यह प्रतिमा 12वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य की है, जो बलुआ पाषाण से बनी हुई है.लोकल 18 से बात करते हुए बालकृष्ण लोखंडे ने बताया कि यहां 6वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक की भगवान विष्णु की प्रतिमाएं मौजूद हैं. यह मध्य प्रदेश के हर एक भू-भाग से तो मिली ही है, साथ ही भोपाल के कई अलग-अलग इलाकों से मिली है. इसमें आशापुरी, समसगढ़, परवलिया और रायसेन जैसी जगह शामिल हैं.
प्रतिमा 80 सेमी लंबी और 58 सेमी ऊंची
भगवान विष्णु के क्षीर सागर में विश्राम की लीला को प्रदर्शित करने वाली प्रतिमा में भगवान विष्णु को सात फनों के शेष नाग की शैय्या पर समुद्र निधि को दिखाते हुए शयन अवस्था में है, जो शंख, चक्र, गदा लिए हुए हैं. यह प्रतिमा 80 सेमी लंबी और 58 सेमी ऊंची है, जिसमें मत्स्य, वराह, कल्कि सहित भगवान विष्णु के दशावतार है. साथ ही बह्माजी के चारों पुत्रों को भी शिल्पाकिंत किया है. चरणों की ओर मां लक्ष्मी विराजमान है. यह अतिप्राचीन प्रतिमा भोपाल के समसगढ़ गांव से मिली थी.
संग्रहालय में 8वीं ई. से 13वीं ई. तक की प्रतिमाएं मौजूद
जे पी बिड़ला संग्रहालय में योग, नारायण की लगभग 8वीं-9वीं शताब्दी की प्रतिमा भी है, जो कि भोपाल से ही मिली है. इसके अलावा वाराही की लगभग 9वीं-10वीं शताब्दी है. यह प्रतिमा भी भोपाल से ही मिली थी. वहीं भगवान विष्णु की लगभग 10वीं शताब्दी की भोपाल, उमा. महेश्वर की भी 10वीं शताब्दी की ग्राम नेवरी भोपाल, भगवान गणेश की लगभग 11वीं शताब्दी की ग्राम समसगढ़, भोपाल जैसी कई प्रतिमाएं यहां मौजूद हैं.