विदेश

गाजा पर मुसलमान देश भी चुपचाप देख रहे हमले, फिर साउथ अफ्रीका क्यों इतना परेशान; क्या कनेक्शन…

इजरायल और हमास में जारी संघर्ष को लेकर मुस्लिम देश बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं हैं।

पिछले दिनों इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठकें जरूर हुईं, लेकिन निंदा प्रस्ताव से आगे कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। वहीं इजरायल और गाजा से करीब 11 हजार किलोमीटर दूर बसा दक्षिण अफ्रीका इस मामले में काफी मुखर है।

वह लगातार गाजा पर इजरायली हमलों की निंदा कर रहा है और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में इजरायल के खिलाफ केस भी दायर किया है।

इस केस पर गुरुवार से सुनवाई शुरू हुई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर जिस गाजा के लिए मुस्लिम देश भी ज्यादा चिंतित नहीं है, उसे लेकर गैर-मुस्लिम बहुल देश द. अफ्रीका क्यों इतना मुखर है।

दरअसल इसके पीछे कई दशक पुराना इतिहास है, जब द. अफ्रीका में नेल्सन मंडेला संघर्ष कर रहे थे और फिलिस्तीन में यासिर अराफात नेतृत्व कर रहे थे।

द. अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करने वाले नेल्सन मंडेला को 1990 में जेल से रिहा किया गया था। इसके दो सप्ताह बाद वह जाम्बिया गए थे, जहां उन्होंने अफ्रीकी नेताओं से मुलाकात की थी, जिन्होंने उनका इस संघर्ष में साथ दिया था।

यहां पर एयरपोर्ट में स्वागत के लिए यासिर अराफात भी खड़े थे। काफिया पहने अराफात ने मंडेला के पहुंचते ही उन्हें गले लगा लिया और दोनों गालों पर किस किए।

मंडेला मुस्कुरा दिए और दोनों हाथ पकड़कर आगे बढ़े। यह दो नेताओं के संघर्ष में एकसाथ जुड़ने की कहानी थी।

जब मंडेला ने कहा- फिलिस्तीनियों के बिना हमारी आजादी अधूरी

नेल्सन मंडेला मानते थे कि द. अफ्रीकी की लोगों की तरह ही फिलिस्तीनी भी परेशान हैं और उन्हें आजादी मिलनी चाहिए। वह अकसर इस मुद्दे को उठाते रहते थे।

यही नहीं 1994 में जब नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति चुने गए तो उन्होंने मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को धन्यवाद दिया। इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा, ‘हम जानते हैं कि हमारी आजादी फिलिस्तीनियों की स्वतंत्रता के बिना अधूरी है।’

तब से ही द. अफ्रीका और फिलिस्तीनी के बीच अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। मंडेला के बाद भी द. अफ्रीकी नेता इजरायल की ओर से लगाए प्रतिबंधों की तुलना अफ्रीका में रहे रंगभेद से करते रहे हैं। उनकी राय रही है कि अपने ही घर में उत्पीड़न का यह मामला द. अफ्रीका में काले लोगों पर हुए अत्याचार जैसा ही है। 

इजरायल के 1990 वाले कदम से भी रहा है गुस्सा

इजरायल से दूरी और फिलिस्तीन से द. अफ्रीका की नजदीकी का एक और ऐतिहासिक कारण है। कहा जाता है कि 1990 के मध्य में वहां की रंगभेद वाली सरकार को इजरायल ने हथियार मुहैया कराए थे। इसे लेकर भी द. अफ्रीका में इजरायल के खिलाफ ऐतिहासिक गुस्सा रहा है।

अब गाजा में एक बार फिर से इजरायल के हमलों ने द. अफ्रीकी सरकार और वहां के लोगों को उत्तेजित कर दिया है। केपटाउन और जोहानिसबर्ग जैसे बड़े शहरों में इजरायल के खिलाफ हजारों लोगों ने आंदोलन किया है। फिलहाल द. अफ्रीका में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सरकार है, जो नेशनल मंडेला की पार्टी है।

क्यों मंडेला के बाद भी पुरानी नीति पर कायम हैं सरकारें

इसी पार्टी के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा हैं। उन्होंने हाल ही में गाजा की जंग को लेकर एक भाषण दिया था, जिसमें उनके पास फिलिस्तीनी झंडा दिखा था। इसे फिलिस्तीन के लिए उनके समर्थन के तौर पर देखा गया था।

बता दें कि साउथ अफ्रीका भले ही ब्रिक्स और जी-20 जैसे संगठन का हिस्सा है, लेकिन कूटनीतिक तौर पर वह दुनिया में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। इसके बाद भी इजरायल को लेकर उसका गुस्सा उल्लेखनीय है।

नेल्सन मंडेला 2013 में अपने निधन तक फिलिस्तीन के प्रबल समर्थक थे और अब भी देश का नेतृत्व उसी नीति पर कायम है।

Post Views: 2

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button