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हादसे के बाद जापान का बंद हुआ संयंत्र फिर होगा चालू, बिजली का होगा निर्माण

टोक्यो। फुकुशिमा परमाणु संयंत्र हादसे के बाद जापान पर ऊर्जा संकट छा गया था। दुर्घटना के बाद जापान ने परमाणु ऊर्जा के विकल्प पर फिर विचार किया था, लेकिन अब 13 साल बाद स्थिति बदल गई है। जापान का काशीवाजाकी कारिवा परमाणु संयंत्र फिर से काम करने के लिए तैयार है। यह विकास न केवल जापान के ऊर्जा संकट से निपटने के दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी एक सीख है। 

बता दें 2011 में फुकुशिमा में आई सुनामी के कारण परमाणु संयंत्र के रिएक्टर पिघल गए थे, जिससे रेडियोधर्मी तत्वों का प्रसार हुआ था। इस हादसे के बाद जापान ने परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर कई सवाल उठाए थे और अपने परमाणु संयंत्रों को बंद कर दिया था। अब जापान ने अपनी ऊर्जा नीति में सुधार के साथ परमाणु ऊर्जा का उपयोग फिर से शुरू कर दिया है। काशीवाजाकी कारिवा, जो दुनिया का सबसे बड़ा उन्नत बॉयलिंग वाटर रिएक्टर है, अब नए सुरक्षा उपायों और तकनीकी सुधारों के साथ फिर से काम करने के लिए तैयार है।

काशीवाजाकी कारिवा संयंत्र में अब एक 15 मीटर ऊंची दीवार बनाई गई है जो सुनामी जैसी आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करेगी। संयंत्र के डिप्टी सुप्रिंटेंडेंट मसाकी दाइतो का कहना है कि फुकुशिमा जैसे हादसों से बचने के लिए जरूरी सुधार किए गए हैं। नई बैकअप पॉवर सप्लाई और उच्च गुणवत्ता वाले वेंटिलेशन सिस्टम को जोड़ने से रेडियोधर्मी कणों की संभावना को 99.9 फीसदी तक घटाया गया है। 2011 के बाद जापान के परमाणु संयंत्र बंद हो गए थे, और देश को जीवाश्म ईंधन, सौर ऊर्जा और प्राकृतिक गैस पर निर्भर रहना पड़ा था। इसने जापान की ऊर्जा लागत को बढ़ा दिया था, जिससे करीब 42 अरब रुपए रोजाना खर्च होने लगे थे। इस संकट के बाद, जापान ने अपने परमाणु संयंत्रों की उम्र 60 साल तक बढ़ाने का फैसला लिया और 2030 तक परमाणु ऊर्जा से 20 से 22 फीसदी बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

भारत के लिए यह एक सीख है। जापान ने अपनी ऊर्जा नीति को सुधारते हुए परमाणु ऊर्जा की वापसी को संभव बनाया है। भारत को भी अपने ऊर्जा संकट से निपटने के लिए परमाणु ऊर्जा का सुरक्षित और प्रभावी तरीके से उपयोग करने पर विचार करना चाहिए, ताकि उसकी ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को भी पूरा किया जा सके। जापान का परमाणु ऊर्जा की ओर फिर से लौटना, इसके पहले के हादसों के बावजूद, ऊर्जा नीति और पर्यावरणीय सुरक्षा के संतुलन का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है। 

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