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भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कनाडा को सबक सिखाने बनाया मास्‍टर प्‍लान

नई दिल्ली। भारत और कनाडा के बीच तनाव बना हुआ है, जब कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भारत को अपने दुश्‍मन देशों की सूची में डाल दिया है। इस पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा को सबक सिखाने मास्‍टर प्‍लान तैयार किया है। जयशंकर जो भारत की विदेश नीति के प्रमुख रणनीतिकार माने जाते हैं, इस समय वैश्विक कूटनीति में सक्रिय हैं और उनका मुख्य लक्ष्य कनाडा पर दबाव बनाना है।

फाइव-आइज देशों का सहयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है
जयशंकर की रणनीति में फाइव-आइज देशों का सहयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। फाइव-आइज एक खुफिया संगठन है, जिसमें अमेरिका, कनाडा, ऑस्‍ट्रेलिया, न्‍यूजीलैंड और यूनाइटेड किंगडम (यूके) शामिल हैं। इन देशों के बीच खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान होता है और जयशंकर का मानना है कि इन देशों के जरिए से कनाडा पर दबाव डाला जा सकता है। 

ट्रंप के समर्थन से कनाडा पर प्रभाव डाला जा सकता है
विशेष रूप से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच मजबूत रिश्ते को ध्यान में रखते हुए जयशंकर यह उम्मीद करते हैं कि ट्रंप के समर्थन से कनाडा पर प्रभाव डाला जा सकता है। कनाडा में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और ऑस्‍ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस का प्रसारण हुआ था। भारत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और यह मामला कनाडा के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परेशानी का कारण बन सकता है। ऑस्‍ट्रेलिया के साथ भारत के संबंध बेहद मजबूत हैं, और ऐसी घटनाएं कनाडा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।

भारत और ब्रिटेन के बीच अच्छे संबंध 
ब्रिटेन जो कि फाइव-आइज का सदस्य है, कनाडा के रुख को लेकर पहले भारतीय पक्ष में नहीं था, लेकिन भारत के कड़े रुख के बाद ब्रिटेन ने कनाडा से हरदीप सिंह निज्जर हत्या की जांच में सहयोग की मांग की। भारत और ब्रिटेन के बीच अच्छे संबंध हैं, और यह स्थिति ब्रिटेन को भारत के पक्ष में लाने में मददगार साबित हो सकती है। इस समय न्‍यूजीलैंड की स्थिति तटस्थ है और इसका भारत की कूटनीतिक रणनीति पर ज्यादा असर नहीं दिखता है। हालांकि, जयशंकर की प्राथमिकता फाइव-आइज के प्रमुख देशों के जरिए कनाडा पर दबाव बनाने की है ताकि भारत के हितों की रक्षा की जा सके। इस तरह जयशंकर की रणनीति कनाडा पर कूटनीतिक दबाव बनाने की ओर अग्रसर है, और भारत की विदेश नीति में यह एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।

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