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नवंबर माह शुरु फिर भी पहाड़ों पर बर्फबारी नहीं, मौसम में गर्माहट

पर्यटकों को भी बर्फबारी का इंतजार, उत्तर भारत के क्षेत्रों में प्रदूषण से हालात गंभीर

नई दिल्ली। हर साल नवंबर की शुरुआत में हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने लगती थी, लेकिन इस साल स्थिति अलग नजर आ रही है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम गर्म और सूखा बना हुआ है। 
समुद्र तल से चार हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर, तुंगनाथ, जहां आमतौर पर इस समय तक बर्फ की मोटी परत दिखाई देती है, वहां बर्फ नहीं जम पाई है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री धाम भी बर्फबारी का इंतजार कर रहे हैं। इन इलाकों में दिन में तापमान सामान्य से ज्यादा होने से पर्यटकों को ठंड की बजाय हल्की गर्मी का अहसास हो रहा है।
देहरादून के मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक के मुताबिक इस साल मानसून के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में सामान्य से 90फीसदी तक कम बारिश हुई है, जिससे तापमान में पर्याप्त गिरावट नहीं हो पाई है। सामान्यतः मानसून के बाद होने वाली बारिश से तापमान में गिरावट आती है और ठंड बढ़ती है, लेकिन इस बार अपेक्षाकृत सूखा मौसम रहा, जिससे पहाड़ों पर भी ठंड कम महसूस हो रही है। उन्होंने बताया कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण इन क्षेत्रों का तापमान 2-3 डिग्री ज्यादा है, जिससे दिन में हल्की गर्मी हो रही है।
सामान्यतः हिमालयी क्षेत्र में नवंबर में बर्फबारी होने लगती थी, जो पहाड़ों की शीत ऋतु की शुरुआत का संकेत होती थी। हालांकि, इस बार पश्चिमी विक्षोभ में देरी और मानसून के बाद कम बारिश होने से बर्फबारी में रुकावट आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अगले कुछ दिनों में पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होता है तो नवंबर के बीच में बर्फबारी की शुरुआत हो सकती है, जिससे ठंड बढ़ेगी। वहीं दूसरी ओर, उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषण ने हालात गंभीर बना दिए हैं। दिल्ली, गाजियाबाद, सोनीपत, आगरा और आसपास के शहरों में हवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आई है। सुबह-सुबह धुंध और कोहरे के साथ मिलकर इन शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 300 के पार रिकॉर्ड किया गया, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है।
विशेषज्ञों के मुताबिक मैदानी क्षेत्रों में तापमान में गिरावट नहीं होने के कारण और प्रदूषण के कारण वायुमंडल में ठहरी हुई धुंध कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि ऐसी स्थिति बनी रही तो आगे सर्दियों में स्मॉग की समस्या और गंभीर हो सकती है। उत्तर भारत में पराली जलाने, वाहनों के धुएं, और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण के चलते सर्दियों के आगमन पर धुंध और स्मॉग का असर और बढ़ सकता है।
बर्फबारी की कमी का असर उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग पर भी पड़ने की उम्मीद है। हर साल नवंबर के महीने में चार धाम और हिमालयी क्षेत्र बर्फबारी देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। बर्फबारी की कमी और अपेक्षाकृत गर्म मौसम के कारण, स्थानीय व्यवसायों और पर्यटन उद्योग को संभावित नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी होने से जलधारा भी इन क्षेत्रों के पर्यावरण के लिए जरुरी होती है, जिससे नदियों का प्रवाह बढ़ता है और जल स्रोतों को नई ऊर्जा मिलती है।
मौसम विभाग ने संभावना जताई है कि पश्चिमी विक्षोभ जल्द सक्रिय होकर उत्तराखंड में बर्फबारी का दौर शुरू कर सकता है। आने वाले हफ्तों में ठंड बढ़ेगी और प्रदूषण की स्थिति सुधरने की संभावना है लेकिन इस समय तक मौसम में बदलाव का इंतजार करना ही एकमात्र विकल्प है।

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