नवापारा में धूमधाम से मनाया गया पोला,लगेगा ठेठरी खुरमी का भोग, नगर सहित गांवों में उत्साह का माहौल
राजिम : हरेली, खमरछठ के बाद छत्तीसगढ़ का प्रमुख पर्व पोला गुरुवार को नवापारा राजिम सहित अंचल में उत्साह से मनाया गया ।छत्तीसगढ़ी में इस त्यौहार को पोरा कहा जाता है।
आज से ही महिलाओं को तीज के लिए मायके आने के लिए लेने जाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। बच्चे नांदिया-बैल व पोरा-चक्की से खेलने में मगन हैं। पूजा करने के बाद नांदिया बैल को छग के प्रमुख व्यंजन ठेठरी-खुरमी का भोग लगाया गया।
पोला प्रमुखत: किसान भाइयों का ही त्योहार है। आज के दिन गांवों में मिट्टी से बने नांदिया बैल व पोरा चक्की की पूजा की जाती है। ठेठरी-खुरमी का भोग लगाकर बच्चों को खेलने दिया जाता है।
गांवों की गलियों व सड़कों पर बच्चों को नांदिया बैल से खेलते नजर आते हैं। दूसरी ओर ग्रामीण बालिकाएं पोरा यानी चक्की में रेत डालकर प्रतीकात्मक रूप से आटा पीसने का काम करती है। हालांकि अब गांवों में भी जांता यानी चक्की का चलन कम हो गया है।
इसका स्थान आटा चक्की ने ले लिया है।इसी कड़ी मे नगर पालिका परिषद की एल्डरमेन मति स्वर्णजीत कौर ने अपने मोहल्ले में पोला त्योहार पर बैलों की पूजा अर्चना कर नगर सहित अंचल वासियों के खुशहाली की कामना की पूजा कार्यक्रम मे रत्ना साहू ,पायल साहू ,जगनूर कौर ,गजरा बाई,ज्ञानशित ताम्रकर,आशु राजपूत,ज्योति,पायल सुखदीप कौर,,पीयूष अधिकारी ,सुकून साहू,त्रिवेणी साहू सहित महिलाएं एवम बच्चे शामिल हुए
आज से शुरू होगा तीज के लिए लेने आने का सिलसिला
बेटियों को तीज का त्योहार मनाने के लिए ससुराल से मायके लाने का सिलसिला पोला के दिन से शुरू हो जाता है। इस कारण आज के दिन बसों व लोकल ट्रेनों में दूसरे दिनों की अपेक्षा ज्यादा भीड़ देखी जा सकती है।
पिता या भाई जब ससुराल पहुंचते हैं तो तीजहारिनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। दरअसल वे मायके आकर पोला के तीन दिन बाद पति के दीर्घायु के लिए तीज का व्रत रखती हैं। इस पर्व के पहले दिन रात कड़ू (कड़वे) भात यानी करेला की सब्जी खाने की परंपरा बरसों से चली जा आ रही है।