छत्तीसगढ

अजीत जोगी-रमन सिंह सीएम बनने के बाद बने विधायक, भूपेश बघेल ने तोड़ी परंपरा…

राष्ट्रवादी न्यूज ऑफिस डेस्क


छत्तीसगढ़ में एक बार फिर पांचवें विधानसभा चुनाव के लिए पार्टियाें ने कमर कस ली है। यौवन की दहलीज पर खड़े छत्तीसगढ़ विधानसभा ने भी अपने 23 बसंत पूरे कर लिए है।

प्रदेश के विधानसभा के चुनाव के बाद सरकार के गठन के समय प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी और दूसरे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को पहले मुख्यमंत्री बनाया गया और बाद में उप चुनाव के बाद वह विधायक बने हैं।

सीएम की कुर्सी तक अभी तक तीन नेता पहुंचे। इनमें दो को पहली बार उप चुनाव ने ही सदन में पहुंचाया। वहीं इस परंपरा को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तोड़ दिया।

वह सीधे पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर पहले विधायक बने इसके बाद सदन में मुख्यमंत्री बनकर पहुंचे हैं। प्रदेश में चुनाव तो चार हुए लेकिन सरकार पांच बार बनी।

राज्य गठन के समय बहुमत में थी कांग्रेस

प्रदेश में राज्य गठन के समय वर्ष 2000 में सदन में कांग्रेस का बहुमत था। इसलिए कांग्रेस से पहले मुख्यमंत्री बनाए गए। पूर्व आइएएस अजीत जोगी उस वक्त सदन के सदस्य नहीं थे। बिना विधायक के ही वह मुख्यमंत्री बनाए गए। 2003 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। भाजपा बहुमत में आई। उस समय भाजपा ने मुख्यमंत्री के तौर पर डा. रमन सिंह को चुना मगर वह भी विधायक नहीं थे। ऐसे में दोनों मुख्यमंत्री उप-चुनाव के जरिये विधानसभा के सदस्य बने।

जोगी के लिए भाजपा विधायक ने छोड़ी सीट

राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने अजीत जोगी के लिए तत्कालीन भाजपा विधायक रामदयाल उइके ने बिलासपुर जिले की मरवाही सीट छोड़ी थी। उइके के इस्तीफे के बाद मरवाही में उप चुनाव हुआ, जिसमें जोगी बड़ी अंतर के साथ जीतकर विधानसभा पहुंचे। जोगी ने 2003, 2008 और 2018 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ा।

भाजपा विधायक ने ही दी रमन को भी सीट

डा. रमन सिंह 2003 में जब मुख्यमंत्री बने तब उनके लिए तत्कालीन भाजपा विधायक प्रदीप गांधी ने सीट छोड़ी। गांधी राजनांदगांव के डोंगरगांव सीट से विधायक थे। 2004 में डोंगरगांव में उप चुनाव हुआ। 2008 में डा. सिंह ने सीट बदल लिया। अब वे राजनांदगांव से चुनाव लड़ते हैं।

चार नेता प्रतिपक्ष चुनाव हारे, सिंहदेव ने बनाया रिकार्ड

पिछले चुनावों में नेता प्रतिपक्ष दूसरी बार सदन में नहीं पहुंच पाए। 2000 में भाजपा के नंदकुमार साय नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। 2003 में जोगी के खिलाफ मरवाही सीट से चुनाव लड़े और हार गए। 2003 में भाजपा की पहली सरकार बनी तब कांग्रेस के महेंद्र कर्मा नेता प्रतिपक्ष बने। कर्मा 2008 का चुनाव हार गए। 2013 के चुनाव से पहले ही झीरम नक्सली नरसंहार में वह बलिदान हो गए। 2008 में कांग्रेस ने रविंद्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाया। साजा विधानसभा सीट से लगातार चुनाव जीतने वाले चौबे 2013 का चुनाव हार गए। हालांकि 2018 के चुनाव में नेता प्रतिपक्ष रहे कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव ने इस परंपरा को तोड़ी वह चुनाव भी जीते और प्रदेश के पहले उपमुख्यमंत्री भी बने।

हर बार हारे भाजपा के स्पीकर

भाजपा सरकार में अब तक जितने भी स्पीकर यानी विधानसभा अध्यक्ष हुए हैं कोई भी लगातार दूसरी बार नहीं जीता है। पहली सरकार में अध्यक्ष रहे प्रेम प्रकाश पांडेय 2008 का चुनाव हार गए। दूसरी सरकार में धरमलाल कौशिक अध्यक्ष बने और 2013 का चुनाव हार गए। इसके बाद भाजपा नेता गौरीशंकर अग्रवाल विधानसभा अध्यक्ष रहे वह भी 2018 का चुनाव हार गए। अभी कांग्रेस के नेता डा. चरणदास महंत अध्यक्ष हैं।

पंचायत मंत्री भी नहीं पहुंचे सदन

राज्य की पहली सरकार में अमितेष शुक्ल पंचायत मंत्री थे। 2003 का चुनाव वे हार गए। पहली भाजपा सरकार में पंचायत मंत्री रहे अजय चंद्राकर 2008 का चुनाव हार गए। भाजपा की दूसरी सरकार में पहले रामविचार नेताम उसके बाद हेमचंद यादव पंचायत मंत्री रहे। दोनों ही 2013 का चुनाव हार गए। हालांकि भाजपा की तीसरी सरकार में पंचायत मंत्री रहे अजय चंद्राकर 2018 में चुनाव जीत गए। अभी कांग्रेस सरकार में रविंद्र चौबे पंचायत मंत्री हैं।

महिला बाल विकास मंत्री का पद भी

प्रदेश में महिला बाल विकास मंत्री का भी पद रिकार्ड कायम करता रहा है। पहली सरकार में गीता देवी सिंह के पास इसकी जिम्मेदारी थी। 2003 का चुनाव वे हार गईं। भाजपा की पहली सरकार में रेणुका सिंह को महिला बाल विकास की जिम्मेदारी दी गई। 2008 का चुनाव हार गईं। दूसरी सरकार में लता उसेंडी को यह जिम्मेदारी मिली। लगातार दो बार की विधायक उसेंडी 2013 का चुनाव हार गईं। भाजपा सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं रमशीला साहू को पिछली बार टिकट ही नहीं मिला। वर्तमान में कांग्रेस सरकार में अनिला भेड़िया महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं।

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