ओलंपिक खेलों के इतिहास का सबसे मनहूस दिन, खिलाड़ियों पर हमले का बदला लेने के लिए दिखा ईश्वर का गुस्सा…
पेरिस ओलंपिक खेलों की शुरूआत हो चुकी है।
भारत समेत दुनिया के कई देशों के खिलाड़ी इन खेलों में हिस्सा लेने के लिए पहुंच चुके हैं।
ऐसे ही साल 1972 में ओलंपिक खेलों के आयोजन जर्मनी के म्यूनिख शहर में हुआ था, जिसमें हुई एक घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था।
म्युनिख में चल रहे खेलों के इस महाकुंभ में दुनिया भर के खिलाड़ियों के साथ-साथ इजरायल के खिलाड़ी भी आए हुए थे। इजरायल को आजाद हुए इस समय तक लगभग 2 दशक ही हुए थे।
वैश्विक स्तर पर अपने लिए जगह तलाशता इजरायल लगातार अपने पड़ोसी देशों से लड़ रहा था। अमेरिका से मिले मजबूत हथियारों की दम पर कोई भी देश इजरायल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पा रहा था।
ऐसे में फिलिस्तीनी आतंकवादियों के समूह ब्लैक सेप्टेम्बर ने जर्मनी पहुंचे इजरायली खिलाड़ियों पर खिलाड़ियों के कैंप में घुस कर हमला बोल दिया और उन्हें बंधक बना लिया।
उस समय कुल 11 खिलाड़ियों में से 2 को हमला करते समय ही मार दिया गया, जबकि बाकी 9 खिलाड़ियों को बंधक बना लिया गया।
234 आतंकवादियों को छोड़ने की रखी मांग, इजरायल ने किया मना
आतंकियों ने 9 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बनाने के बाद इजरायल की नई नवेली पहली महिला प्रधानमंत्री गोल्डामेयर के पास संदेशा भिजवाया कि इजरायल अगर इन खिलाड़ियों की सलामती चाहता है तो जेलों में बंद 234 फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ दे।
अपनी आतंकविरोधी नीति के चलते इजरायल ने आतंकियों को छोड़ने से मना कर देता है। इजरायल ने कहा कि हम आतंकवादियों से बात नहीं करते।
पीएम गोल्डा मेयर ने अपने खिलाड़ियों को बचाने के लिए जर्मनी से एक स्पेशल ऑपरेशन चलाने की अनुमति मांगी लेकिन जर्मनी की सरकार ने अपनी जमीन पर इजरायल के कमांडो्स को नहीं उतरने दिया।
जर्मनी की तरफ से खिलाड़ियों को छुड़ाने के लिए किया गया सैन्य प्रयास विफल रहता है, जिससे आतंकियों को लग जाता है कि वह जर्मनी में सुरक्षित नहीं है।
वह जर्मन सरकार से मांग करते हैं कि उन्हें खिलाड़ियों के साथ इजिप्ट जाने के लिए हेलिकॉप्टर दिया जाए। जर्मन सरकार मान जाती है।
जर्मनी ने बनाया नाकाम प्लान और..
जर्मनी की सरकार ने प्लान बनाया कि सभी आतंकवादियों को एयरपोर्ट पर ही स्नाइपर के जरिए खत्म कर देंगे। आतंकियों के एयरपोर्ट पर पहुंचते ही गोलीबारी शरू हो जाती है।
जर्मन पुलिस कुछ हद तक सफल भी हो जाती है । कुल आठ आतंकवादियों में से 5 मारे जाते हैं और 3 आतंकवादी पकड़े जाते हैं।
लेकिन इस गोलीबारी में सभी खिलाड़ी भी मारे जाते हैं। इजरायल लगातार इन आतंकवादियों को उन्हें सौंपने को कहता है लेकिन जर्मनी ऐसा नहीं करता।
एक महीने बाद ही एक विमान हाइजैक करके आतंकवादियों द्वारा अपने साथियों को छुड़ा भी लिया जाता है। पहले से ही गुस्से में बैठे इजरायल में इससे और ज्यादा गुस्सा भड़क जाता है।
पीएम गोल्डामेयर ने बनाई कमेटी एक्स
अपने खिलाड़ियों की मौत का बदला लेने के लिए इजरायल की पीएम ने एक कमेटी का गठन किया जिसका नाम एक्स रखा इसको मोसाद के एक बहुत ही चतुर अफसर माइकल हरारे लीड कर रहे थे। इजरायल की तरफ से इस कमेटी को फ्री हैंड़ दे दिया गया।
फिर शुरू हुआ “WARTH OF GOD”
माइकल हरारे ने एक-एक करके सभी को ढूंढना शुरू किया। हर छोटे से छोटे लिंक को जोड़ा और कुल मिलाकर 35 लोगों को टारगेट बनाया। मोसाद के एजेंट लगातार इस हमले में शामिल लोगों को टारगेट करते रहे।
इसके लिए मोसाद ने हर तरीक को आजमाया वह मारने के पहले मरने वाले के परिवार के पास गुलदस्ता भेजते और उसके साथ एक कार्ड भी जिस पर लिखा होता कि ‘हम न भूलते हैं न माफ करते हैं’ मोसाद ने इस हमलें में शामिल सारे आतंकियों और छोटी से छोटी मदद करने वाले को भी मौत के घाट उतार दिया।
इस ऑपरेशन के दौरान इनसे गलती भी हुई, 1973 में इन्होंने ब्लैक सेप्टेमबर का चीफ समझ कर एक वेटर की हत्या कर दी, जिससे पश्चिमी देशों में इजरायल को जमकर कोसा गया।
लेकिन इजरायल ने अपना ऑपरेशन नहीं रोका और 1979 में म्यूनिख हमले के मास्टर माइंड रेड प्रिंस यानी की सलामे को भी बॉम्ब से उड़ा दिया।
पश्चिमी देशों ने इजारयल पर इस ऑपरेशन को रोकने का बहुत दबाव डाला लेकिन इजरायल नहीं रुका। साल 1992 में इस ऑपरेशन के तहत इजरायल ने हत्या की जब मोसाद ने पेरिस में फिलिस्तीन लिबरेशन फ्रंट के इंटेलिजेंस चीफ एटिफ बेसिसो को मार गिराया।
इजरायल ने इस ऑपरेशन में अपने 35 टारगेट में से 33 को मार डाला लेकिन दो बचे रहे पहला अबु दाउद और दूसरा पीएलओ चीफ यासिर अराफात।
दाउद के ऊपर भी इजरायल ने काफी हमले किए लेकिन वह लगातार बचता रहा। बाद में एक डाक्यूमेंट्री में उसने कहा कि उसे म्यूनिख में खिलाड़ियों को मारने का कोई गम नहीं है अगर उसे ऐसा करने का फिर से मौका मिले तो वह फिर से ऐसा करेगा। बाद में दाउद और यासिर अराफात दोनों की नेचुरल कारणों से मौत हो गई।
इजरायल का यह ऑपरेशन करीब 20 साल तक चला, इस ऑपरेशन के जरिए इजराल ने आतंकवादियों के मन में एक डर बैठा दिया कि यदि आप इजरायल के नागरिकों पर हमला करते हैं तो आप कहीं भी हो मोसाद आपको ढूंढ कर मार ही देगी।
अपने खिलाड़ियों पर हुए इस हमले का बदला इजरायल ने ले लिया लेकिन ओलंपिक खेलों में हुए इस हमले ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था।
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