छत्तीसगढ

कांग्रेस में “बवाल” का डायलॉग…“ माहौल ऐसा बनाओ… कि लोग रिजल्ट को नहीं माहौल को याद रखें..”

CG Assembly Election।( गिरिजेय ) “माहौल ऐसा बनाओ कि लोग रिज़ल्ट को नहीं …. माहौल को याद रखें…।” यह डायलॉग फ़िल्म “बवाल” का है। फिल्म के हीरो अजय दीक्षित ( वरुण धवन ) को यह बोलते हुए दिखाया गया है। चुनावी माहौल में इसे सुनकर लगा कि “बवाल” का यह डायलॉग कांग्रेस पार्टी के अंदाज़ के साथ क्या फ़िट हो सकता है… ?

ख़ासकर चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी जिस तरह का माहौल बनाती है, उसे देखकर तो कोई भी कह सकता है कि रिज़ल्ट से अधिक ज़ोर माहौल पर ही होता है।

अभी ही नहीं पिछले काफ़ी समय से ही कांग्रेस का अंदाज़ कुछ ऐसा ही रहा है। पार्टी विपक्ष में रहे तो भी ऐसी ही स्टाइल रहती है और अगर सत्ता में हो तब तो उसका यह अंदाज़ हिट हो जाता है। तभी तो चुनाव की बात शुरू होते ही लोगों के बीच लाख टके का सवाल यही होता है कि – इस बार कांग्रेस की टिकट किसे मिलेगी… ? तब लोग नतीजे की बात नहीं करते… बस माहौल की बात होती है।

इस बार भी पिछले कई महीनों से “बवाल” के हीरो के अंदाज़ में माहौल बनना शुरू हो गया । पार्टी के प्रदेश प्रभारी दौरे पर दौरे कर रहे…। मीटिंग दर मीटिंग की ख़बरें मीडिया में जगह बना रही हैं। सब जानना चाहते हैं कि इस बार टिकट का पैमाना क्या होगा…? किस आधार पर टिकट बंटेगी…?

मौज़ूदा विधायकों को टिकट मिलेगी या नहीं…? ऐसे कई सवाल तैरते रहते हैं…। बीच –बीच में पार्टी के बड़े नेता कोई ज़ुमला छोड़कर चले जाते हैं। विश्लेषण करने वाले इसी पर जुगाली करते रहते हैं….। और असली जवाब की तलाश भी चलती रहती है। फ़िर शुरू होता है… टिकट के लिए आवेदन जमा करने का सिलसिला…। आकर्षक क़वर वाली फ़ाईल में फ़ोटो के साथ बायोडाटा बना – बनाकर टिकट के दावेदार अपनी अर्ज़ी बलॉक में जमा करते हैं। छोटा सा मेला लगता है।

एमएलए बनने का सपना लेकर नए- पुराने चेहरे हरकत में आते हैं। सोशल मीडिया का चलन शुरू होने के बाद अब तो नया ट्रेंड शुरू हुआ है…। दावेदार अपनी अर्ज़ी जमा कराते समय ही अपने मोबाइल के कैमरे में “सेल्फ़ी विद् टिकट” के अंदाज़ में अपनी तस्वीर खिंचाते हैं ।

फ़िर फेसबुक में पोस्ट डालकर और वाट्सएप में डीपी लगाकर टिकट की दौड़ में एक कदम आगे बढ़ने का सुख पा लेते हैं..। अर्जी पेश करने की आख़िरी तारीख़ आती है और मीडिया में भी दावेदारों के नाम छप जाते हैं । इसका भी अपना सुख है।

हालांकि यह सवाल अपनी ज़गह बना ही रहता है कि टिकट किसे मिलने वाली है…? लेकिन इस सवाल के जवाब से बेखबर प्रक्रिया आगे बढ़ती रहती है। आवेदनों का बंडल ब्लॉक से निकलकर जिला कांग्रेस कमेटी के दफ़्तर से होते हुए राजधानी के सफ़र पर निकल जाता है। मीटिंग पर मीटिंग होती रहती है… टिकट किसे मिलने वाली है- इस सवाल का जवाब खोजने वाले आपस में बहस करते रहते हैं और उनके बीच भी आपसी ज़ोर आजमाइश चलती रहती है।उधर अपने साथ इस सवाल को भी नत्थी कर दावेदारों की दावेदारी दिल्ली चली जाती है।

इधर माहौल बना रहता है। बल्कि ज़ोर पकड़ता रहता है। कयासबाज़ी के दौर में दावेदारों के नाम उनकी तस्वीरों के साथ बार-बार मीडिया और सोशल मीडिया में तैरते रहते हैं। तारीख़ पर तारीख़ और कुछ संभावित लिस्ट के साथ बहाव तेज़ होता जाता है। इस बीच कभी कोई छोटी सी ख़बर दावेदारों की उम्मीद जगा जाती है तो कभी कोई ख़बर उम्मीदों पर पानी फेरकर चली जाती है।

इस तरह के लम्बे दांव-पेंच से गुज़रने के बाद कहीं फ़ाईनल लिस्ट सामने आती है।रिजल्ट नहीं… बल्कि माहौल को यादगार बनाने का यह फ़ार्मूला कांग्रेस के ख़ास अंदाज़ का एक बेहतरीन नमूना है। बीजेपी की स्टाइल से तुलना करने वाले लोग उदाहरण देते हैं कि छत्तीसगढ़ में इस बार बीजेपी ने करीब़ दो महीने पहले ही अपनी एक लिस्ट ज़ारी कर दी थी ।

ज़ाहिर सी बात है कि कमज़ोर समझी जाने वाली सीटों पर पहले से उम्मीदवार पेश करने के पीछे रणनीति यही होगी कि उम्मीदवार को लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने और संपर्क बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

लेकिन जिन इलाकों में उम्मीदवार पहले से तय किए जा चुके हैं, वहां लोग यह कहते भी मिल जाएंगे- “हम तो अपने बीजेपी उम्मीदवार को अब तक नहीं पहचान पाएं हैं। लेकिन लम्बी चली क़वायद के बीच कांग्रेस के टिकट दावेदारों के नाम इतनी बार सामने आ गए हैं कि उनके बारे में सब पता लग गया है।रिज़ल्ट बाद में आएगा… अभी तो माहौल बना हुआ है…।” कांग्रेस की लिस्ट पहले भी अपने समय पर आती थी…. इस बार भी अपने समय पर ही आएगी…।

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