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महिला जज की चिट्ठी पर एक्शन में आया सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट से मांगी रिपोर्ट…

एक महिला सिविल जज ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर शारीरिक और मानसिक शोषण का आरोप लगया है।

साथ ही उन्होंने अपना जीवन समाप्त करने की अमुमति भी मांगी है। महिला जज की यह चिट्ठी वायरल होते ही सुप्रीम कोर्ट हरकत में आ गया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से इम पूरे प्रकरण पर रिपोर्ट मांगी है। 

आपको बता दें कि सीजेआई को बांदा की सिविल जज अर्पिता साहू ने पत्र लिखा है। इस दौरान उन्होंने बाराबंकी कोर्ट में नियुक्ति के दौरान घटी घटनाओं पर बात की है।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के दौरान दो पन्नों के पत्र में उन्होंने जिला जज की तरफ से की जाने वाली अनुचित मांगों और फिर उत्पीड़न का जिक्र किया है।

उनका कहना है कि कई बार शिकायत करने के बाद भी वह यह पत्र लिखने को मजबूर हुईं हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने पत्र में लिखा, ‘मेरे छोटे से कार्यकाल में मुझे प्रताड़ित होने का दुर्लभ सम्मान मिला है। मेरे साथ हद यौन उत्पीड़न हुआ है। मेरे साथ कचरे जैसा बर्ताव किया गया। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मैं कोई कीड़ा हूं। मुझे दूसरों को न्याय दिलाने की उम्मीद थी। मैं भी कितनी भोली थी!’

उन्होंने आगे लिखा, ‘मैं भारत में काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं कि यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लो। यह हमारे जीवन का सच है। POSH ACT हमसे कहा गया बड़ा झूठ है। कोई हमारी नहीं सुनता, किसी को नहीं पड़ी।’

रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने पत्र में यह भी कहा, ‘मैं दूसरों को क्या न्याय दिलाऊंगी, जब मुझे ही कोई उम्मीद नहीं है। मुझे लगा था कि शीर्ष न्यायालय मेरी प्रार्थना सुनेगा, लेकिन में रिट याचिका 8 सेकंड में ही बगैर मेरी प्रार्थना सुने और विचार किए खारिज हो गई। मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी, मेरा सम्मान और मेरी आत्मा को भी खारिज कर दिया गया है। यह निजी अपमान की तरह लग रहा है।’

उन्होंने लिखा, ‘मेरी और जीने की इच्छा नहीं है। बीते डेढ़ सालों में मुझे चलती फिरती लाश बना दिया गया है। बगैर आत्मा और बेजान शरीर को लेकर और घूमने का कोई मतलब नहीं है।’

साल 2022 में बाराबंकी में पदस्थ रहने के दौरान जज साहू ने रीतेश मिश्रा और मोहन सिंह नाम के दो वकीलों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी। उनके आरोप थे कि वकीलों ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है। जुलाई में ही इलाहबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए सीसीटीवी फुटेज खंगालने के आदेश दिए थे।

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