छत्तीसगढ

गांजा रूट : सस्ता नशा आखिर आ कहां से रहा? सीनियर पुलिस अधिकारी ने दी बड़ी जानकारी…..

OFFICE DESK :- सस्ते और लोकल नशे के रूप में मार्केट में अपनी पकड़ बना चुका गांजा आखिर आ कहां से रहा है। यह एक सबसे बड़ा सवाल है।

नोएडा – गाजियाबाद और दिल्ली में ये गली-गली और मोहल्ले में बहुत आसानी से लोगों को उपलब्ध हो जाता है। पुलिस ने बीते दिनों नोएडा और गाजियाबाद में जून और जुलाई में ही करीब 1000 किलोग्राम गांजा पकड़ा है।

पकड़े गए गांजा की कीमत करीब 3 करोड़ के आसपास होगी। लेकिन आंध्रप्रदेश से लेकर इसे एनसीआर तक पहुंचाना और उसके लिए कॉरिडोर तैयार करना, तस्करों की बड़ी उपलब्धि माना जा रही है।

छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार के रास्ते यूपी तक गांदे की खेप को पहुंचाया जा रहा है। कभी बड़े-बड़े कैंटर में कबाड़ और सामान के नीचे, तो कभी ट्रक में नमक की बोरियों के नीचे लाद कर, तो कभी लग्जरी गाड़ी में सूट बूट पहने ड्राइवर के भेष में तस्कर इसे लेकर एनसीआर तक पहुंच रहे हैं।

आंध्र प्रदेश और उड़ीसा से इसे एनसीआर तक पहुंचाने के लिए इन तस्करों ने एक कॉरिडोर तैयार कर लिया है जिस पर छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार का रास्ता लेते हुए यमुना एक्सप्रेस वे होते हुए यह तस्कर एनसीआर में दाखिल हो रहे हैं।

यह एक सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला नशा है और बहुत ही आराम से यह छात्र-छात्राओं, मजदूरों, कामगारों और अन्य लोगों में बांटा जा सकता है। कीमत बहुत ज्यादा अधिक ना होने के चलते लोग आराम से इसे खरीद लेते हैं और फिर इस नशे को इस्तेमाल करते हैं।

नोएडा के थाना एक्सप्रेसवे पुलिस ने 17 जून को 360 किलो गांजे के साथ बीएचयू के एक छात्र को गिरफ्तार किया था। पकड़े गए गांज की कीमत 60 लाख बताई गई थी। उसके पास से एक लग्जरी कार बरामद हुई थी। जिससे वह गांजे को उड़ीसा से ले आकर एनसीआर में सप्लाई कर रहा था।

इस मामले में पुलिस ने बताया कि विनय कुमार दुबे बीएचयू में पढ़ाई करता है और अपने चार दोस्तों के साथ गाड़ियों में उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से गांजा लौटकर एनसीआर लेकर आता है। गाड़ी लग्जरी होने की वजह से लोगों को इस बात का शक नहीं होता कि यह लोग गांजा तस्कर हैं।

पुलिस ने बताया कि उड़ीसा से वाया जबलपुर होते हुए यह दिल्ली जा रहा था। दिल्ली में किसी पार्टी को इनको गांजा सप्लाई करना था। इनका काम सिर्फ गांजे को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर छोड़ देना है जिसके लिए अच्छी रकम दी जाती है।

दूसरे मामले में 7 जुलाई को गाजियाबाद पुलिस ने उड़ीसा से कैंटर में नमक की बोरियों के नीचे छुपा कर लाए जा रहे 220 किलो गांजे को बरामद किया और 2 लोगों को गिरफ्तार किया।

पकड़ा गया एक आरोपी ट्रक ड्राइवर है और उसने बताया कि उसकी कमाई काफी कम हो रही थी इसलिए उसने इस काम को चुना। यह तस्कर कैंटर में नमक की बोरियां, कबाड़ सब्जी और अन्य सामान लोड कर देते थे और उन बोरियों के नीचे गांजे के पैकेट छुपा देते थे।

इससे रास्ते में ना तो किसी को शक होता था और ना ही भारी समान होने की वजह से कोई चेकिंग के लिए से नीचे उतरवाता था। यह आरोपी उड़ीसा से रवाना होने के बाद माल डिलीवरी होने तक अपना मोबाइल बंद रखते थे जिससे पकड़ में ना आएं।

तीसरे मामले में नोएडा पुलिस ने 10 जुलाई को 345 किलोग्राम गांजा पकड़ा और एक आरोपी को गिरफ्तार किया। यह तस्कर आंध्र प्रदेश और उड़ीसा से गांजा लाकर धड़ल्ले से दिल्ली हरियाणा और नोएडा में सप्लाई कर रहा था। इससे नारकोटिक्स टीम और कोतवाली थाना फेज टू पुलिस ने चेकिंग के दौरान गिरफ्तार किया।

इसका एक साथी फरार है, जिसकी तलाश की जा रही है। अंतरराजजीय गांजा तस्कर इंद्रजीत सेनापति उर्फ कालिया अपने साथी परितोष सरकार के साथ मिलकर आंध्रप्रदेश से गांजा लाकर दिल्ली एनसीआर में सप्लाई करने का काम करता है। अब तक पकड़े गए तस्करों ने जो पुलिस को जानकारी दी है,

उसके मुताबिक गांजे की डिमांड पूरे एनसीआर में सबसे ज्यादा नोएडा और ग्रेटर नोएडा में है। खासतौर से झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में इसकी खपत सबसे ज्यादा है। अब गांजे की डिमांड स्कूल-कॉलेज और ग्रेटर नोएडा में रहने वाले विदेशी नागरिकों में भी है।

नेशनल ड्रग डिपार्टमेंट ट्रीटमेंट के एक अध्ययन के मुताबिक, देश में नशे के लिए गांजे का इस्तेमाल शराब के बाद सबसे ज्यादा दूसरे नंबर पर होता है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा इलाके में खोखे रेडी पटरी ऊपर गांजे की बिक्री काफी आसानी से हो जाती है और यह सस्ता नशा होने के कारण सबकी पहुंच में भी आ जाता है।

पुलिस अधिकारियों से इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक, गांजे की तस्करी अलग-अलग स्टेप पर की जाती है और इसके लिए अलग अलग व्यक्ति निश्चित किए गए हैं। जैसे आंध्र प्रदेश और उड़ीसा की पहाड़ियों पर पूरा का पूरा गांव इसकी खेती में लगा हुआ है। उस जगह पर किसी और के आने जाने की मनाही है।

जब उन्हें गांजे को बाहर भेजना होता है तब तस्करों से संपर्क किया जाता है और तस्कर अपने वाहन लेकर उनके गांव के बाहर पहुंच जाते हैं। इस धंधे में जुड़े लोग किसी को भी अपने गांव के अंदर नहीं आने देते। गांव के लोग खुद ही उनकी गाड़ियों को अंदर लेकर जाते हैं और माल को गाड़ी में लोड करते हैं और उसके बाद वापस लाकर उस गाड़ी को उन्हें सौंप देते हैं।

दूसरे स्टेप पर तस्कर वहां से जब चलता है तो वह अपना एक रूट निर्धारित कर लेता है कि उसको छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार के किन रास्तों से होकर यह खेप पंहुचानी है। साथ ही तस्कर अगर ज्यादा शातिर होता है तो वह एक से दो बार अपने वाहन को भी अदला बदली करता है ताकि अगर उसके पीछे कोई मुखबिर है

तो उसको भी चकमा दिया जा सके। इसके बाद वह नोएडा या गाजियाबाद और दिल्ली पहुंच कर जिस बिचौलिए या सप्लायर को माल सप्लाई करना होता है, उसके हवाले माल कर देता है और आपका पैसा लेकर गायब हो जाता है।अब तीसरे स्टेप पर काम सप्लायर का होता है। कि वह अपने सेट जगह पर माल को कैसे डिस्ट्रीब्यूटर करता है। वह अपने इलाके में तमाम उन जगहों पर अपने लोगों को सेट करके रखता है

जहां पर इसकी बिक्री सबसे ज्यादा होती है। माल सप्लायर तक पहुंचते ही सबको इसकी सूचना दे दी जाती है और छोटी-छोटी पुड़िया में इसको बांधकर सभी तक पहुंचा दिया जाता है। गांजे की सप्लाई और इससे जुड़े तस्कर, बिचौलिए, सप्लायर के चेन के बारे में रिसर्च करने वाले एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि इसकी तस्करी रोक पाना काफी मुश्किल है।

उन्होंने बताया है कि यह काफी सस्ता और आसानी से साथ ले जाने वाला नशा होता है जिसको पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है। एक छोटी सी पुड़िया में कुछ ग्राम गांजा रखकर कोई कहीं भी ट्रेवल कर सकता है ना तो यह कोई बॉटल है और ना कोई मेटल, तो इसको साथ रखने पर किसी को शक भी नहीं होता।

साथ ही साथ कई जगह पर पुलिस की भी कमी देखने को मिलती है, इसीलिए आसानी से इसके तस्कर एनसीआर में प्रवेश कर जाते हैं और अपने माल की सप्लाई करते हैं। फिर भी लगातार कोशिश करने के बाद पुलिस तस्करों के अलग-अलग चेन को पकड़ने की कोशिश कर रही हो और काफी हद तक कामयाब भी हुई है।

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