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‘वध नहीं वध का समाधान’, इजरायली युवक ने फौज में शामिल होने से किया इनकार तो जबरन जेल में ठूंसा…

इजरायल-हमास युद्ध के बीच  इजरायली सेना में भर्ती का भी सिलसिला जारी है।

दूसरी तरफ, कई युवक इजरायली रक्षा बल में शामिल होने से इनकार कर रहे हैं। उनका मानना है कि हिंसा किसी हिंसा का समाधान नहीं हो सकता है, इसलिए रक्षा बल में शामिल होकर फिलिस्तीन के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ सकते।

लेकिन सरकार ऐसे युवकों से सख्ती से निपट रही है।

अमेरिकी मैग्जीन टाइम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इज़राइल-हमास युद्ध के बीच इजरायली सेना में भर्ती होने से इनकार करने के बाद 18 वर्षीय इजरायली युवक को 30 दिनों तक जेल की सजा सुनाई गई है।

मेसारवोट के एक्स अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक वीडियो के अनुसार, जेल जाने वाले नवयुवक ताल मिटनिक ने तेल हाशोमर सैन्य अड्डे में जाने से पहले कहा, “मेरा मानना ​​​​है कि वध से वध का समाधान नहीं हो सकता है।”

गाजा पर आपराधिक हमले से उस नृशंस नरसंहार का समाधान नहीं होगा जिसे हमास ने अंजाम दिया था। हिंसा से हिंसा का समाधान नहीं होगा।  इसीलिए मैंने ऐसे सैन्य ऑपरेशन में शामिल होने से मना कर दिया।”

वीडियो में 18 वर्षीय नवयुवक कहता दिख रहा है कि मुझे तेल हाशोमर जेल भेजा जा रहा है क्योंकि मैंने सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया है।

इसके बाद  मिटनिक के समर्थन में सैन्य जेल के बाहर कई लोग जमा हो गए। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अगर मिटनिक फिर से सेना में भर्ती होने से इनकार करता है तो उसकी शुरुआती जेल की सजा 30 दिनों से अधिक बढ़ाई जा सकती है।

यह खबर गाजावासियों के लिए निराशा की अवधि के दौरान आया है, जो युद्ध शुरू होने के लगभग 12 सप्ताह बाद भी इजरायली बलों की बमबारी और हमलों का शिकार बने हुए हैं।

हमास द्वारा संचालित गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, इजरायल के हमलों में अब तक 20,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई है कि गाजा में पांच लाख से अधिक लोग भूख से मर रहे हैं, जिससे हर दिन अकाल का खतरा बढ़ रहा है।

7 अक्टूबर को हमास के आतंकी हमलों में बंधक बनाए गए करीब ढाई सौ लोगों को पूर्णत: नहीं रिहा कराने की वजह से भी इजरायल में प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा है।

दूसरी तरफ 80 दिनों की जंग के बावजूद इजरायली सेना हमास का खात्मा नहीं कर पाई है। दुनियाभर के अन्य देशों में भी अब इजरायल के प्रति सहानुभूति खत्म होती दिख रही है।

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